We all have read so many poems in our childhood but some of them remains remember for lifetime. One of them is below Ramdhari Singh Dinkar's poem called "krishna-ki-chetawani".
- वर्षों तक वन में घूम घूम
- बाधा विघ्नों को चूम चूम
- सह धूप घाम पानी पत्थर
- पांडव आये कुछ और निखर
- सौभाग्य न सब दिन होता है
- देखें आगे क्या होता है
- मैत्री की राह दिखाने को
- सब को सुमार्ग पर लाने को
- दुर्योधन को समझाने को
- भीषण विध्वंस बचाने को
- भगवान हस्तिनापुर आए
- पांडव का संदेशा लाये
- दो न्याय अगर तो आधा दो
- पर इसमें भी यदि बाधा हो
- तो दे दो केवल पाँच ग्राम
- रखो अपनी धरती तमाम
- हम वहीँ खुशी से खायेंगे
- परिजन पे असी ना उठाएंगे
- दुर्योधन वह भी दे ना सका
- आशीष समाज की न ले सका
- उलटे हरि को बाँधने चला
- जो था असाध्य साधने चला
- जब नाश मनुज पर छाता है
- पहले विवेक मर जाता है
- हरि ने भीषण हुँकार किया
- अपना स्वरूप विस्तार किया
- डगमग डगमग दिग्गज डोले
- भगवान कुपित हो कर बोले
- जंजीर बढ़ा अब साध मुझे
- हां हां दुर्योधन बाँध मुझे
- ये देख गगन मुझमे लय है
- ये देख पवन मुझमे लय है
- मुझमे विलीन झनकार सकल
- मुझमे लय है संसार सकल
- अमरत्व फूलता है मुझमे
- संहार झूलता है मुझमे
- भूतल अटल पाताल देख
- गत और अनागत काल देख
- ये देख जगत का आदि सृजन
- ये देख महाभारत का रन
- मृतकों से पटी हुई भू है
- पहचान कहाँ इसमें तू है
- अंबर का कुंतल जाल देख
- पद के नीचे पाताल देख
- मुट्ठी में तीनो काल देख
- मेरा स्वरूप विकराल देख
- सब जन्म मुझी से पाते हैं
- फिर लौट मुझी में आते हैं
- जिह्वा से काढती ज्वाला सघन
- साँसों से पाता जन्म पवन
- पर जाती मेरी दृष्टि जिधर
- हंसने लगती है सृष्टि उधर
- मैं जभी मूंदता हूँ लोचन
- छा जाता चारो और मरण
- बाँधने मुझे तू आया है
- जंजीर बड़ी क्या लाया है
- यदि मुझे बांधना चाहे मन
- पहले तू बाँध अनंत गगन
- सूने को साध ना सकता है
- वो मुझे बाँध कब सकता है
- हित वचन नहीं तुने माना
- मैत्री का मूल्य न पहचाना
- तो ले अब मैं भी जाता हूँ
- अंतिम संकल्प सुनाता हूँ
- याचना नहीं अब रण होगा
- जीवन जय या की मरण होगा
- टकरायेंगे नक्षत्र निखर
- बरसेगी भू पर वह्नी प्रखर
- फन शेषनाग का डोलेगा
- विकराल काल मुंह खोलेगा
- दुर्योधन रण ऐसा होगा
- फिर कभी नहीं जैसा होगा
- भाई पर भाई टूटेंगे
- विष बाण बूँद से छूटेंगे
- सौभाग्य मनुज के फूटेंगे
- वायस शृगाल सुख लूटेंगे
- आखिर तू भूशायी होगा
- हिंसा का पर्दायी होगा
- थी सभा सन्न, सब लोग डरे
- चुप थे या थे बेहोश पड़े
- केवल दो नर न अघाते थे
- ध्रीत्रास्त्र विदुर सुख पाते थे
- कर जोड़ खरे प्रमुदित निर्भय
- दोनों पुकारते थे जय, जय